गौतम गम्भीर ने हरषित राणा के खिलाफ ऑनलाइन ताड़ना को 'शर्मनाक' कहा, जिससे चयन विवाद की गर्मी बढ़ी; टूर में प्रदर्शन ही जवाब देगा।
सोशल मीडिया निंदा: क्यों हो रही है इसकी बढ़ती चर्चा और क्या हो रहा है असली असर
जब कोई व्यक्ति सोशल मीडिया पर गलत बात कहता है, तो लाखों लोग उसके खिलाफ आवाज़ उठाते हैं। यही सोशल मीडिया निंदा, एक ऐसा डिजिटल न्याय जिसमें जनता सीधे एक व्यक्ति या संस्था के खिलाफ अभियोग लगाती है, बिना किसी अदालत के है। ये निंदा कभी सच्चाई के लिए होती है, तो कभी बस एक ट्रेंड के लिए। इसका असर इतना गहरा होता है कि लोग नौकरी खो देते हैं, रिश्ते टूट जाते हैं, और कभी-कभी जान भी चली जाती है।
इसका सबसे बड़ा हिस्सा है सोशल मीडिया प्रतिबंध, जब किसी देश या सरकार द्वारा एक निश्चित समय के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बंद कर दिए जाते हैं, अक्सर अशांति या राजनीतिक तनाव के दौरान। जैसे छत्रपुर के 16 यात्री नेपाल में फंस गए, क्योंकि वहाँ सोशल मीडिया प्रतिबंध था। वहीं, कुनाल कमरा ने बुकमायशो के खिलाफ डिलीस्टिंग विवाद को उठाया — यह भी एक तरह की सोशल मीडिया निंदा थी, जहाँ डिजिटल डेटा की आज़ादी पर सवाल उठा। ये सब एक ही चीज़ के अलग-अलग पहलू हैं: ऑनलाइन निंदा, जो कभी न्याय का नाम लेती है, तो कभी बस एक गुस्से का बहाना बन जाती है।
इसके अलावा, जब कोई व्यक्ति सिर्फ अपने फैशन या उम्र के लिए निंदित हो जाता है — जैसे महिएका शर्मा और हार्दिक पंड्या के बारे में अफवाहें — तो यह डिजिटल शोषण, एक ऐसा व्यवहार जहाँ लोगों की निजी जिंदगी को जानबूझकर बाहर लाया जाता है, बिना किसी वास्तविक अपराध के है। ये सब घटनाएँ एक ही तथ्य को दर्शाती हैं: सोशल मीडिया पर निंदा अब कोई बातचीत नहीं, बल्कि एक शासन है। इसका असर सिर्फ एक ट्वीट तक नहीं, बल्कि एक व्यक्ति के भविष्य तक फैल जाता है।
इस लिस्ट में आपको ऐसे ही असली मामले मिलेंगे — जहाँ सोशल मीडिया निंदा ने किसी की जिंदगी बदल दी, या किसी के खिलाफ जानबूझकर अभियोग लगाए गए। आप देखेंगे कि कैसे एक ट्रेंड ने एक राज्य को बंद कर दिया, कैसे एक फोटो ने किसी की नौकरी छीन ली, और कैसे एक बयान ने पूरी टीम को बदल दिया। ये सब असली कहानियाँ हैं, जो आपको सोचने पर मजबूर कर देंगी — क्या हम सच में न्याय कर रहे हैं, या बस एक भावना के आगे झुक रहे हैं?