26 सितंबर 2025 को भारतीय शेयर बाजार में Sensex ने 800 अंकों से अधिक की गिरावट दर्ज की, जबकि Nifty 24,700 के नीचे गिरा। चार मुख्य कारकों – अमेरिकी टैरिफ, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का निकास, रुपए का निरंतर दबाव और आर्थिक मंदी के डर – ने इस तेज़ धकेल को प्रेरित किया। सभी सेक्टर लाल बैंड में बंद हुए, जिससे निवेशकों की पूंजी पर भारी चोट लगी।
रुपए की गिरावट के बारे में सब कुछ
जब बात रुपए की गिरावट, रुपये के मूल्य में लगातार कमी, जो आयात, निवेश और महंगाई को सीधे प्रभावित करती है. अन्य नाम से इसे रुपया डिप्रिशिएशन भी कहा जाता है, तो इसका असर देश के हर कोने में महसूस होता है। साथ ही विनिमय दर, विदेशी मुद्रा के मुकाबले रुपये की कीमत और मुद्रा नीति, केन्द्रीय बैंक द्वारा रुपये के मूल्य को नियंत्रित करने की रणनीति इस गिरावट के प्रमुख कारण और नियंत्रक हैं।
सरल शब्दों में कहें तो, जब रुपये का रुपए की गिरावट तेज़ी से बढ़ता है, तो आयात की लागत बढ़ जाती है। इससे पेट्रोल, खाद्य वस्तु और बिजली जैसी रोज़मर्रा की चीज़ों की कीमतें ऊपर उठती हैं। वहीं निर्यातियों को थोड़़ा फायदा हो सकता है, पर कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था को तनाव अनुभव होता है। इस कारण से लोगों के घर में खर्च करने की क्षमता घटती है और बचत में गिरावट आती है।
एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि रुपये की गिरावट शेयर बाजार में अनिश्चितता पैदा करती है। जब निवेशकों को लगता है कि मुद्रा कमजोर हो रही है, तो वे अपने निवेश को सुरक्षित साधनों जैसे गोल्ड या विदेशी शेयरों की ओर मोड़ते हैं। इससे निफ्टी और सेंसेक्स जैसे इंडेक्स में उतार-चढ़ाव बढ़ता है, जैसा कि हमारे "शेयर बाजार बड़ी गिरावट" शीर्षक वाले लेख में बताया गया है। इसके अलावा, विदेशी पूंजी का प्रवाह भी अस्थिर हो जाता है, जिससे कंपनियों के विदेशी फंडिंग प्रोजेक्ट पर असर पड़ता है।
रुपए की गिरावट के प्रमुख कारण
पहला कारण है कोविड‑19 के बाद की वैश्विक सप्लाई चेन समस्याएँ। कई देशों ने उत्पादन घटा दिया, जिससे वस्तुओं की कीमतें बढ़ीं और रुपये पर दबाव बना। दूसरा कारण है उच्च आयातित बुनियादी वस्तुओं की कीमत—मुख्यतः तेल और धातु—जिनकी कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेज़ी से बढ़ रही थीं। तीसरा कारण है मौद्रिक नीति में देरी; जब RBI अचानक दरें बढ़ाने से हिचकिचाता है, तो बाजार में विश्वास कम हो जाता है और रुपये का मूल्य घटता है। अंत में, जियोपॉलिटिकल टेंशन, जैसे यूएस में टैरिफ और यूरोपीय आर्थिक नीतियों में बदलाव, भी इस गिरावट में योगदान देते हैं।
इन कारणों को समझना जरूरी है क्योंकि यही हमें उचित समाधान चुनने में मदद करता है। उदाहरण के तौर पर, यदि आयात लागत ही मुख्य कारण है, तो सरकार को स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देना चाहिए, जैसे इलेक्ट्रिक वाहन और सौर पैनल बनाना। अगर मौद्रिक नीति में देरी है, तो RBI को तेज़ी से रेपो रेट बढ़ाना चाहिए ताकि विदेशी निवेश आकर्षित हो और रुपये की मूल्य स्थिर हो।
हमारी पोस्ट सूची में कई लेख इस दिशा में गहराई से चर्चा करते हैं—जैसे "CBDT ने टैक्स ऑडिट रिपोर्ट फाइलिंग डेडलाइन बढ़ाई" में बताया गया है कि कर नीति कैसे मुद्रा को प्रभावित कर सकती है, और "ITR दाखिल करने की आखिरी तिथि बढ़ायी गई" में दिखाया गया है कि राजस्व संग्रह में देरी से वित्तीय स्थिरता पर असर पड़ता है।
रुपए की गिरावट सिर्फ एक नंबर नहीं, बल्कि एक पूरी आर्थिक कहानी है। यह कहानी हर नागरिक के जेब में भी उतरती है, चाहे वह घर के खर्च को लेकर हो या बच्चों की शिक्षा में निवेश के बारे में। इसलिए, इस विषय पर विभिन्न दृष्टिकोणों को समझना हमारे लिए फायदेमंद है। आगे आप देखेंगे कि कैसे विभिन्न क्षेत्रों—क्रिकेट से लेकर टैक्स रिफॉर्म तक—में इस परिवर्तन ने असर डाला है।
अब आप तैयार हैं आगे की पढ़ाई के लिए, जहाँ हम विस्तार से बताएंगे कि कौन-से सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित हुए, कैसे बाजार ने प्रतिक्रिया दी, और क्या कदम उठाए जा सकते हैं। इस सूची में हर लेख आपको थोड़ा‑बहुत नया दृष्टिकोण देगा, जिससे आप व्यक्तिगत और व्यवसायिक निर्णय बेहतर बना सकेंगे।