जब हर्षवर्धन राने, अभिनय के साथ Desi Movies Factory ने अपनी नई फ़िल्म Ek Deewane Ki Deewaniyat को दीवाली के मौके पर रिलीज़ किया, तो भारत‑भरी सिनेमा‑प्रेमियों की निगाहें तुरंत वहाँ टिक गईं। फिल्म का प्रीमियर Ek Deewane Ki Deewaniyat का फ़िल्मी प्रीमियरमुंबई में हुआ, जहाँ भीड़ ने धूमधाम से स्वागत किया। इस बात ने बॉक्स‑ऑफिस को एक शुरुआती बूस्ट दिया, पर समीक्षकों ने इस रोमांटिक ड्रामा को मिश्रित प्रतिक्रियाओं के साथ देखा।
फ़िल्म की पृष्ठभूमि और निर्माण
फ़िल्म का निर्देशन मिलाप ज़वेरी, निर्देशक ने किया, जो अब तक हिट कॉमेडी और एक्शन थ्रिलर दोनों में हाथ आजमाए थे। मिलाप ने मुष्ताक़ शेख के साथ कहानी लिखी, जिसमें राजनीति‑रोमांस का मिश्रण दिखाया गया। उत्पादन कंपनी Desi Movies Factory ने प्रोजेक्ट को वित्तीय और लॉजिस्टिक सपोर्ट दिया, जिससे मुंबई की 90‑स के नॉस्टैल्जिक लुक को बड़ी बारीकी से परिधान, सेट और कैमरिंग से पुनः जीवित किया गया।
फ़िल्म की शूटिंग मुख्यतः मुंबई के विभिन्न लोकेशन पर हुई: कॉमर्शियल सड़कों से लेकर सिटी के एलीट क्लब तक। यह शहर ही कहानी का मुख्य पृष्ठभूमि बनता है, जहाँ राजनीतिक उथल‑पुथल और फिल्मी चमक दोनों एक साथ टकराते हैं।
कहानी का सार और प्रमुख पात्र
कहानियों में अक्सर लोग अपने सपनों के पीछे कूदते हैं, पर यहाँ हर्षवर्धन राने का किरदार विक्रमादित्य भोसले एक ‘ज्वलंत युवा राजनीतिज्ञ’ के रूप में उभरता है, जो मुख्य मंत्री का पद पाने की चाह में है। पिता, गनपत राव भोसले, जिन्हें सचिन खेडेकर, वृद्ध राजनीतिज्ञ ने निभाया है, उसका पूरा जीवन बाबा‑बाबा की आकांक्षाओं में सिमटा हुआ है। विक्रम के माँ के जन्म पर मृत्यु के कारण उसे दोषी ठहराने वाले इस कठोर पिता की छवि, फ़िल्म में एक गहरी दबी आशंका को उजागर करती है।
वहीं सोनम बजवा, अभिनेत्री ने अद्वितीय अदा रंधावा का रोल निभाया — एक सुपरस्टार, जो ‘प्यार को आज़ादी मानती है, ना कि कब्जे’। उसके अभिनय को कई समीक्षकों ने ‘स्वतंत्र और दमदार’ बताया। अदा का आकर्षण, विक्रम की दिल‑धड़कन को तेज़ कर देता है, पर जैसे‑जैसे कहानी आगे बढ़ती है, उनका इस प्यार में फँसना अचानक ‘ऑब्सेशन’ में बदल जाता है।
सम्पर्क में रहने वाले सहायक पात्र, जैसे शाद रंधावा, विक्रम के भरोसेमंद साथी और दिग्गज अभिनेता अमिताभ बच्चन, राजा राजकुमार विजेन्दर का बलिदान‑भरा किरदार भी कहानी को एक अतिरिक्त लेयर देता है।
समीक्षकों की प्रतिक्रिया
फ़िल्म को टाइम्स ऑफ इंडिया ने 2.5/5 सितारों की रेटिंग दी। उन्होंने कहा, “फ़िल्म का पहला अँधा हिस्स़ विंटेज 90‑स की नॉस्टैल्जिया में डूबा, पर बाद में कहानी के दोहराव वाले ट्रोप्स ने उत्साह को छीना।” वहीं फिल्म इन्फॉर्मेशन ने पोस्ट‑इंटरवल भाग को “भयानक रूप से लिखी हुई” कहा, जहाँ लेखकों ने “प्लॉट खो दिया”। दूसरी ओर BollyMovieReviewz ने मिलाप ज़वेरी की “लव, पेन और पैशन” को “कम्पेलिंग” के रूप में सराहा।
जबकि IMDb ने इस को “ब्रेलेन्ट मूवी” कहा, जिसमें “रोमांटिक ड्रामा का रूपांतर” जैसा है।
अधिकांश समीक्षाएँ एक बात पर सहमत थीं: हर्षवर्धन और सोनम ने अपनी अभिनय शक्ति से फिल्म को ‘बचाया’। उनका ‘इमोशन‑फुल’ डायलॉग डिलीवरी, और सोनम की संगीत वाली डांस सीक्वेंस, दर्शकों के दिल में गूंजते हैं। संगीत निर्देशक अमरदीप सिंह ने ‘दिल की धड़कन’ जैसे ट्रैक तैयार किए, जो फ़िल्म के इमोशनल पैनल को और भी गहरा बनाते हैं।
फ़िल्म का बॉक्स‑ऑफ़िस और दर्शकों का रिव्यू
दीवाली के टक्कर वाले इस रिलीज़ ने शुरुआती हफ्ते में शहर‑शहर में लगभग ₹8 करोड़ की कमाई देखी। बॉक्स‑ऑफ़िस की इस बुनियादी सफलता के पीछे, फिल्म के प्री‑फ़ेस्टिवल मार्केटिंग और स्टार‑पावर ने बड़ा हाथ निभाया। सोशल मीडिया पर दर्शकों ने अक्सर “विक्रमादित्य की पागल पज़ल” और “अदा का फ्री‑स्पिरिट एटिट्यूड” को चर्चा का विषय बनाया।
हालाँकि, कई दर्शकों ने कहा कि फ़िल्म का ‘फ़ॉर्मूला’ बहुत ही परिचित है: ‘पावर‑भरे राजनीति, सुपरस्टार का लव, और अंत में एक ट्विस्ट’। फिर भी, इस शैली को पसंद करने वाले दर्शक भी “कभी‑कभी ट्रॉप्स को एंटरटेनमेंट की कुंजी समझते हैं” इस बात से नहीं बंधे।
भविष्य में क्या उम्मीदें?
फिल्म की सफलता ने इस साल के अंत में बार-बार रिलीज़ होने वाली ‘डिसी फिल्म फैक्ट्री’ की अगली प्रोजेक्ट्स को नज़र में ला दिया है। मिलाप ज़वेरी के अगले प्रोजेक्ट की अफ़वाहें पहले से ही ट्रेंडिंग टॉपिक बन चुकी हैं, जहाँ वह एक ‘डायनामिक थ्रिलर’ पर काम कर रहे हैं, कहा गया है। हर्षवर्धन और सोनम दोनों ने इस फ़िल्म को अपने करियर के ‘टर्निंग पॉइंट’ बताया, और अगले साल के कार्यकाल में और बड़े रोल्स के लिए तैयार हैं।
फ़िल्म की सांस्कृतिक महत्ता
‘Ek Deewane Ki Deewaniyat’ ने 90‑स की सड़कों को फिर से जीवंत किया, जबकि आज की युवा पीढ़ी को राजनीति‑रोमांस के तनावपूर्ण रिश्ते की झलक दिखायी। यह दिखाता है कि बॉलीवुड अभी भी ‘आसन‑फिल्म‑रेड’ में ‘विचार‑संगत’ कहानी को अपनाने की कोशिश करता है, भले ही वह कभी‑कभी ग्रामीण‑फ़िल्म‑फ़ॉर्म्यूला से हट नहीं पाता।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
फ़िल्म का मुख्य थीम क्या है?
फ़िल्म प्यार और सत्ता के बीच के अंधेरे को उजागर करती है, जहाँ एक राजनेता का जुनून धीरे‑धीरे ऑब्सेशन में बदल जाता है। इस टकराव में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक दबाव दोनों को दिखाया गया है।
क्या फ़िल्म ने बॉक्स‑ऑफ़िस पर भरोसा बनाए रखा?
दीवाली के पिक-टाइम में रिलीज़ होने के कारण शुरुआती हफ़्ते में लगभग 8 करोड़ रुपये की कमाई हुई। हालांकि निरंतरता औसत रही, पर स्टार‑पावर और संगीत ने दर्शकों को बना कर रखा।
हर्षवर्धन और सोनम का परफॉर्मेंस क्यों सराहा गया?
हर्षवर्धन की तीव्रता और सोनम की फ्री‑स्पिरिट पर्सनैलिटी ने किरदारों को वास्तविक बनायां। दोनों ने इमोशनल सीन में गहरी झलक दिखायी, जो समीक्षकों ने विशेष रूप से ‘लग्ज़री एक्टिंग’ कहा।
फ़िल्म की संगीत टीम कौन थी और उनका योगदान क्या रहा?
संगीतकार अमरदीप सिंह ने ‘दिल की धड़कन’, ‘रातों का सफ़र’ जैसे ट्रैक्स तैयार किए। इन गानों ने रोमांटिक सीन को और भी भावनात्मक बना दिया, और कई दर्शक इन्हें प्लेटफॉर्म पर दोहराते रहे।
फ़िल्म के बाद मिलाप ज़वेरी के अगले प्रोजेक्ट पर क्या अंदाज़ा है?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, मिलाप ज़वेरी एक एक्शन थ्रिलर पर काम कर रहे हैं, जिसमें राजनीति की धुरी नहीं बल्कि हाई‑स्टेक मिस्ट्री होगी। यह प्रोजेक्ट उनके डायनामिक डायरेक्शन को दिखाने का मौका देगा।
फ़िल्म में राजनीति और रोमांस का मिश्रण दिखाने की कोशिश है, पर ट्रॉप्स का उपयोग बहुत बर्ता हुआ लगता है। हर्षवर्धन की ऊर्जा थोड़ी घटती है, जबकि सोनम का एंट्री मज़ेदार है।
यह देख के अच्छा लगा कि थिएटर में 90‑स की नॉस्टैल्जिया फिर से ज़िंदा हुई, दर्शकों को कुछ हँसी‑मजाक मिला, साथ में कहानी में थोड़ा संवेदनशील स्पर्श भी है
अगर मैं बोला तो कहना चाहूँगा कि इस फिल्म ने बस वही दोहराया जो पहले से देखा गया है-राजनीतिक पावर प्ले के साथ लव स्टोरी, कोई नया ट्विस्ट नहीं मिला। निर्देशक ने जो विंटेज सेट बनाया वह शानदार है लेकिन कहानी के मोड़ में वह गहराई नहीं ढूँढ़ पाता। कुछ दर्शक इसे एंटरटेनमेंट मानेंगे, पर मेरे हिसाब से यह सिर्फ एक कॉमेडी‑ड्रामा का फॉर्मूला है।
फ़िल्म का हर सीन एक बड़े मंच पर नाटक जैसा है!
बहुत सारी रेट्रो वैब को देख कर दिल खुश हो गया 😊 संगीत ने कहानी को धड़कन दी, पर कुछ सीन में टोन थोडा मोड़ नहीं कर पाया।
फ़िल्म के निर्माताओं ने, विशेष रूप से मिलाप ज़वेरी ने, 90‑स की नॉस्टैल्जिया को पुनर्जीवित करने में, उल्लेखनीय प्रयास किया; इसके साथ ही, कहानी के राजनीतिक पहलू में, जटिलता का समुचित परिचय दिया गया, जिससे दर्शकों को, दोनों, भावनात्मक और बौद्धिक स्तर पर, जुड़ाव महसूस हुआ।
आह, आखिरकार एक और फिल्म जहाँ प्रेम को सत्ता के साथ मिलाया गया, जैसे दो पुराने दोस्त एक ही जगह मिलते हैं और फिर से वही पुरानी बातें दोहराते हैं-कमाल का अनोखा विचार।
फ़िल्म का सेटअप दिलचस्प है, लेकिन भावनात्मक गहराई कभी‑कभी सतही लगती है; फिर भी, सोनम की स्वतंत्रता की बात दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है।
सिनेमा को सामाजिक जिम्मेदारी का ध्यान रखना चाहिए 😊 रोमांस को केवल आकर्षण के लिए नहीं, बल्कि नैतिक संदेश देने के लिए उपयोग किया जाना चाहिए।
उम्मीद है कि अगली फिल्म में इस फ़ॉर्मूले के साथ कुछ नई सोच जुड़ जाएगी, और दर्शकों को और भी बेहतर अनुभव मिलेगा।
जब आप इस फ़िल्म को देखते हैं तो एक रंगीन सिम्फनी आपके कानों में बजती है, जैसे धुप में चमकते हुए रंग‑रंग के पतंगों की झलक। संगीतकार अमरदीप सिंह ने ‘दिल की धड़कन’ को तड़के से सजाया, जिस पर दर्शक तालियों की बरसात कर देते हैं। हर्षवर्धन का किरदार एक ज्वलंत राजनेता की तरह उभरता है, जिसकी आँखों में सत्ता के सपने बिखरे होते हैं। सोनम की एंट्री मानो एक चमकती हुई लहर है, जो फिल्म की हर फ्रेम में ऊर्जा भर देती है। कैमरा एंगल्स 90‑स की गलियों को बड़े ही नॉस्टैल्जिक तरीके से कैद करते हैं, जिससे पुरानी यादें फिर से जीवित हो जाती हैं। संवादों में कभी‑कभी शायरी का तड़का मिलता है, जो दर्शकों को भावनात्मक रूप से खींचता है। प्रत्येक सीन में फैंसी डांस सीक्वेंस का शोज़ जैसे माहौल बन जाता है, जिससे युवा वर्ग को लुभावना लगता है। कहानी में राजनैतिक उथल‑पुथल और प्रेम की ज्वार‑भाटा का मिश्रण एक अद्भुत रसोई जैसा है, जहाँ मसालों का सही संतुलन बना रहता है। हँसी‑मजाक के साथ-साथ गंभीर विचार भी सामने आते हैं, जिससे फ़िल्म सिर्फ मौज‑मस्ती नहीं बल्कि चिंतन का भी स्रोत बनती है। कुछ दृश्यों में कॉमेडी का पिटारा खुलता है, जो तनाव को हल्का कर देता है। जब फिल्म के क्लाइमैक्स तक पहुँचते हैं, तो टेंशन की लहरें आपके दिल को भी झकझोर देती हैं। निर्देशक मिलाप ज़वेरी ने बिंबनात्मक फ्रेमिंग के साथ दर्शकों को कहानी के भीतर खींचा, जैसे एक जादूगर अपनी छड़ी चलाता है। किरदारों के बीच की कनेक्शन छोटी‑छोटी इशारों से भरपूर है, जो दर्शकों को उनके साथ जुड़ाव महसूस कराते हैं। टाइटल ‘Ek Deewane Ki Deewaniyat’ में जैसे ही शब्द सुनते हैं, तो मानो एक पागलपन की लहर मन में उठती है। अंत में, फाइनल गाना एक मोहक धुन के साथ आपको फिर से एंटरटेनमेंट की दुनिया में ले जाता है। कुल मिलाकर, यह फ़िल्म एक रोचक मिश्रण है, जो आपको इस त्योहार के मौसम में बॉक्स‑ऑफ़िस पर एक नई सांस देती है।
इतनी रंगीन बड़ाई के पीछे असली कहानी की गहराई कौन देखता है? यह सिर्फ चमक‑धमक है, दिल की धड़कन की बजाय बाहरी सड़कों पर ही टिकी है।
आपके पॉइंट को समझते हुए, मैं कहना चाहूँगा कि यह फ़िल्म एक हाई‑परफ़ॉर्मेंस प्रोडक्ट की तरह है, जहाँ MVP (Minimum Viable Product) के आकार में भी यूज़र एंगेजमेंट हाई है; इसलिए, इसे सिर्फ सतही नहीं देखकर, एग्जीक्यूटिव प्रॉडक्ट रिव्यू की ज़रूरत है।
बॉक्स‑ऑफ़िस आँकड़े दर्शाते हैं कि फिल्म ने प्रारम्भिक हफ़्ते में ₹8 करोड़ की आमदनी दर्ज की, परन्तु निरंतरता में सुधार की आवश्यकता स्पष्ट है।