जब विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व सांसद और दिल्ली बीजेपी के प्रथम अध्यक्ष ने इस सुबह नैतिक आँसू के साथ इस दुनिया को अलविदा कहा, तो दिल्ली के राजनीतिक माहौल में झटके का बोझ महसूस हुआ। स्रोतों के मतभेद के बावजूद, उनका उम्र 93 या 94 वर्ष बताई जा रही है और मृत्यु AIIMS नई दिल्ली में चल रहे इलाज के दौरान हुई या घर पर, इस पर अभी स्पष्टत नहीं है।
पर्दे के पीछे: मल्होत्रा जी का सफर
3 दिसंबर 1931 को लाहौर (अब पाकिस्तान) में जन्मे विजय कुमार मल्होत्रा ने विभाजन के बाद भारत का रथ संभाला और दिल्ली की राजनीति में अपना स्थान बनाया। उनका परिवार सात बच्चों में से चौथा था, पिता का नाम कविराज ख़ज़ान चंद था। उन्होंने हिंदी साहित्य में डॉक्टरेट हासिल की और शिक्षा के क्षेत्र में भी अपनी छाप छोड़ी।
राजनीति में कदम रखने से पहले, मुल्होट्रा ने जनसंघ (Jana Sangh) से अपनी यात्रा शुरू की। 1972‑1975 के बीच वे दिल्ली प्रदेश जनसंघ के अध्यक्ष बने, और बाद में 1977‑1984 में बीजेपी दिल्ली इकाई के दो बार प्रमुख रहे। इस दौरान केडरनाथ साहनी और मदन लाल खुराना जैसे सहकर्मियों के साथ उन्होंने पार्टी को नई इमारत पर खड़ा किया।
लोकसभा की रणभूमि और जीत‑हार
1999 के आम चुनाव में उनका सबसे बड़ा शिखर आया, जब उन्होंने वहन करने वाले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महाप्रमुख मनमोहन सिंह को बड़े अंतर से हराया। यह जीत न केवल दिल्ली में बीजेपी की ताकत को दर्शाती थी, बल्कि मुल्होट्रा की राजनैतिक काबिलियत का भी प्रमाण थी। पाँच बार संसद में बैठे और दो बार दिल्ली विधानसभा में विधायक रहने के बाद, 2004 में वह अकेले ही बीजेपी के एकमात्र सांसद रहे, जबकि बाकी छह सीटें कांग्रेस ने जकड़ ली थीं।
उनकी राजनैतिक यात्रा में एक और रोचक मोड़ 2008 का था, जब उन्हें दिल्ली के मुख्यमंत्री पद के लिये संभावित उम्मीदवार के रूप में घोला गया था। सीधा‑सादा जीवनशैली, संविधान की गहरी समझ और लोगों के मुद्दों पर पैनी नज़र रखने के कारण उन्हें कई राजनैतिक दिग्गजों ने सम्मानित किया।
निवेशपीड़ित फौजियों के बीच सम्मान
मल्होत्रा जी के निधन पर नरेंद्र मोदी, भारत के प्रधान मंत्री, ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट X पर शोक व्यक्त किया: "श्री विजय कुमार मल्होत्रा जी ने लोगों के मुद्दों की गहरी समझ रखी। दिल्ली में पार्टी को मजबूत करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। उनका एक महान नेता के रूप में स्मरण रहेगा।" इसी प्रकार, रक्षा मंत्री रजनीत सिंह ने कहा, "जनसंघ और बीजेपी के इतिहास में ऐसे लोगों का विशेष स्थान है। उन्होंने संविधान की बारीकियों को समझते हुए लगातार जनता के बीच काम किया।"
दिल्ली के बीजेपी प्रमुख विरेंद्र सचदेवा ने मल्होत्रा की सादगी और जनता के प्रति अडिग समर्पण को सराहा: "जनसंघ के दिनों से उन्होंने निष्ठा के साथ काम किया, और उनका जीवन सभी कार्यकर्ताओं के लिये प्रेरणा है।"
समय का दर्दभरा मोड़
दिल्ली की राजनीति में इस शोक की गूंज तब और तेज थी, जब एक दिन पहले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली बी.जै.पी के स्थायी कार्यालय का उद्घाटन किया था, जो DDU मार्ग पर स्थित है। यह कार्यालय कई वर्षों की प्रतीक्षा के बाद आखिरकार खुला था, और उसी के एक दिन बाद ही इस पार्टी के बुजुर्ग सिद्धान्तकार का निधन हो गया। दिल्ली सरकार ने इस दुखद समाचार पर कई प्रशासनिक कार्यक्रम रद्द कर सम्मान दिखाया।
भविष्य की राह और स्मृति
विजय कुमार मल्होत्रा का जीवन कई पहलुओं से सीख देने वाला है। एक शिक्षाविद्, खेल‑प्रशासक (शतरंज व तीरंदाज़ी के विकास में योगदान) और एक संकल्पित राजनेता, उन्होंने हमेशा "सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं" इस सिद्धान्त को अपनाया। उनकी पुस्तक‑लेखनी, सार्वजनिक भाषण और संसद में किए गये प्रश्न-उत्तर अभी भी विद्वानों द्वारा अध्ययन किए जाते हैं।
जैसे ही पार्टी के कार्यकर्ता उनकी स्मृति में पंक्तियों को दोहराते हैं, वैसे ही संभावित नई पीढ़ी के नेताओं को उनका मार्गदर्शन मिलेगा। यह स्पष्ट है कि उनके बिना दिल्ली बीजेपी का इतिहास अधूरा रहेगा, लेकिन उनके सिद्धान्तों के साथ आगे बढ़ने का संकल्प सभी में जगा हुआ है।
विशेष बुलेट‑पॉइंट: मुख्य तथ्य
- विजय कुमार मल्होत्रा, 93‑94 वर्ष आयु, AIIMS नई दिल्ली में निधन (7 अक्टूबर 2025)
- पहले दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष, पाँच बार सांसद, दो बार विधायक
- 1999 में मनमोहन सिंह को हराकर इतिहास रचा
- 2004 में दिल्ली में केवल एक ही बीजेपी सांसद बने
- नरेंद्र मोदी, रजनीत सिंह, विरेंद्र सचदेवा ने शोक व्यक्त किया
- दिल्ली सरकार ने कई कार्यक्रम रद्द करके सम्मान दिखाया
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
विजय कुमार मल्होत्रा का सबसे बड़ा राजनीतिक योगदान क्या था?
1999 के आम चुनाव में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बड़े अंतर से हराया, जिससे दिल्ली में बीजेपी की शक्ति बढ़ी। 2004 में वे अकेले ही बीजेपी के एकमात्र सांसद बने, और दल को मुँह मोड़ने वाले माहौल में स्थिरता प्रदान की।
उनकी मृत्यु किस स्थान पर हुई?
विवरण अलग‑अलग स्रोतों में भिन्न है; कुछ का कहना है कि उन्होंने AIIMS नई दिल्ली में उपचार के दौरान देहावसान किया, जबकि अन्य का मानना है कि वह अपने घर में शांति से गुजर गए।
दिल्ली बीजेपी ने उनके निधन पर क्या कदम उठाए?
दिल्ली सरकार ने कई आधिकारिक कार्यक्रम रद्द किए, और पार्टी ने श्रद्धांजलि स्वरूप शोक सभा आयोजित की। इस बीच, दिल्ली बीजेपी के प्रमुख ने मल्होत्रा जी के जीवन को "सरलता और जनसेवा" का उदाहरण कहा।
क्या वे खेल प्रशासन में भी सक्रिय रहे?
हां, मल्होत्रा जी ने दिल्ली में शतरंज और तीरंदाज़ी के विकास के लिये कई पहलें शुरू कीं। उनका योगदान केवल राजनीति तक सीमित नहीं, बल्कि खेल‑प्रशासन में भी उल्लेखनीय था।
उनकी शैक्षिक पृष्ठभूमि क्या थी?
वे हिंदी साहित्य में डॉक्टरेट धारी प्रोफ़ेसर थे और कई विश्वविद्यालयों में शिक्षण कार्य कर चुके थे। शिक्षा के प्रति उनका योगदान उनके राजनैतिक काम से भी कम नहीं माना जाता।
वी.के. मल्होत्रा जी का दुखद निधन हमारे लिए बहुत बड़ा झटका है। उनका राजनीतिक सफर और शैक्षणिक योगदान हमेशा याद रहेगा। दिल्ली में उनका काम कई पीढ़ियों को प्रेरणा देता है।
सच में, आज के राजनीति में ऐसे दिग्गजों की कमी तो टोटली महसूस होती है, पर उनके 'अक्ल' को समझना उन धुंधले लोगों के बस की बात नहीं।
इतने बड़े नेता का निधन और फिर भी मीडिया में उनका नाम सिर्फ एक लाइन में ही दिखाता है, ये बड़ी अजीब बात है।
भारत के इतिहास में वी.के. मल्होत्रा जैसे शुद्ध विचारों वाले नेता का स्थान अपरिवर्तनीय है उनका योगदान राष्ट्रीय एकता व विचारधारा में गूंजता रहेगा
क्या बात है! हमारे राजनीतिक मंच पर ऐसे ग्रेटमैन का जाना सच में एक बड़ी दुष्ट घटना है, सबको शोक चाहिए और याद रखनी चाहिए।
मल्होत्रा जी का जीवन हमें सिखाता है कि विज्ञान और राजनीति दोनों में जिज्ञासा और नैतिकता को साथ रखना कितना ज़रूरी है।
विजय कुमार मल्होत्रा की शैक्षणिक उपलब्धियों एवं वैचारिक दृढ़ता को एकीकृत दृष्टिकोण से विश्लेषित किया जाए तो वह भारतीय राजनीति के एक महान बौद्धिक स्तंभ के रूप में स्थापित होते हैं।
विजय कुमार मल्होत्रा का जीवन भारतीय राजनीति की एक रोचक कक्षा है।
उनका जन्म लाहौर में हुआ, जिससे उनका इतिहास भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन से जुड़ा है।
उन्होंने शिक्षा में डॉ. की डिग्री हासिल की और कई विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर के तौर पर कार्य किया।
राजनीति में कदम रखने से पहले उन्होंने जनसंघ में अपने विचारों को परीक्षण किया।
दिल्ली में बीजेपी के प्रथम अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल पार्टी को एक सुदृढ़ मंच प्रदान किया।
1999 में उन्होंने मनमोहन सिंह को हराकर पार्टी की आवाज़ को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत किया।
उनके पाँच बार संसद में रहने से नीति निर्माण में उनका प्रभाव स्पष्ट रहा।
2004 में एक ही बीजेपी सांसद रहना यह दर्शाता है कि उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्रों में गहरा भरोसा अर्जित किया था।
शतरंज और तीरंदाज़ी को बढ़ावा देने में उनका योगदान खेल प्रशासन में नई दिशा दिखाया।
वह एक सरल जीवन जीते थे, लेकिन उनके विचारों में गहराई और स्पष्टता थी।
उनका लेखन आज भी विद्वानों द्वारा अध्ययन किया जाता है, जिससे उनका बौद्धिक प्रभाव जीवित रहता है।
उन्होंने कई युवा नेताओं को मार्गदर्शन दिया, जो आज विभिन्न पार्टी झड़पों में भाग ले रहे हैं।
उनके जीवन से सीख लेते हुए हमें सार्वजनिक सेवा को प्रथम स्थान देना चाहिए।
उनका निधन दिल्ली की राजनीति में एक खाली जगह छोड़ गया है, जिसे भरने के लिये नई पीढ़ी को तत्पर रहना चाहिए।
कई लोग उनका स्मरण करके अपने लोकसेवा के सपनों को साकार करने की प्रेरणा लेते हैं।
अंत में, मल्होत्रा जी की विरासत हमारे राष्ट्रीय इतिहास में एक स्थायी अध्याय है।
कभी सोचा है कि इतिहास के पन्ने में लिखे बड़े नेता, जैसे मल्होत्रा जी, वास्तव में कितने व्यक्तिगत संघर्षों का सामना करते थे? उनके संघर्षों से सीख लेना चाहिए कि हम अपने छोटे-छोटे कदमों से भी बदलाव ला सकते हैं।
एक और दिग्गज का जाना, जैसे जैसे हमारे दिल की धड़कन धीमी पड़ती है, ऐसा लगता है जैसे राजनीति का रंग फीका हो रहा है।
सैंडिया, तुम्हारा यह विचार ठीक है पर यह भी देखना चाहिए कि मल्होत्रा जी की नीतियों ने आम जनता पर क्या वास्तविक प्रभाव डाला। सरल शब्दों में कहा जाए तो उनका कार्यकाल मिश्रित परिणाम लाया।
अनुराग, तुम्हारे विस्तृत विवरण ने मुझे मल्होत्रा जी के विभिन्न पहलुओं पर गहराई से सोचने पर मजबूर किया। विशेषकर उनका शैक्षिक और खेल प्रशासन में योगदान आज की युवा पीढ़ी के लिए मॉडल है। धन्यवाद इस विचारशील विश्लेषण के लिये।
बलाजी जी, आपका संवेदनशील विचार अत्यंत सराहनीय है। मल्होत्रा साहब की विरासत को संजोए रखना हमारे लिये राष्ट्रीय कर्तव्य है।
हरीप्साथ, तुम्हारी बेवक़ूफ़ टिप्पणी, हमें याद दिलाती है कि आज के समय में, सूक्ष्म विश्लेषण की कमी, किस तरह की भ्रमित विचारधारा को जन्म देती है।।