26 सितंबर 2025 को भारतीय शेयर बाजार में Sensex ने 800 अंकों से अधिक की गिरावट दर्ज की, जबकि Nifty 24,700 के नीचे गिरा। चार मुख्य कारकों – अमेरिकी टैरिफ, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का निकास, रुपए का निरंतर दबाव और आर्थिक मंदी के डर – ने इस तेज़ धकेल को प्रेरित किया। सभी सेक्टर लाल बैंड में बंद हुए, जिससे निवेशकों की पूंजी पर भारी चोट लगी।
FPI निकास: पूरी समझ और उसके असर
जब हम FPI निकास, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा भारत के बाजार से पूँजी वापस निकालने की प्रक्रिया. Also known as विदेशी पोर्टफोलियो निवेश निकास, it signals a shift in global money flows that can move markets in a single day.
यह घटना विदेशी पोर्टफोलियो निवेश, डिमांड‑ड्रिवन इक्विटी और डेब्ट में बाहरी फंड का निवेश के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ी है। जब विदेशी निवेशक जोखिम‑प्रेमी या जोखिम‑अवरोधक बनते हैं, तो उनका प्रस्थान बाजार में तरलता घटा सकता है। भारत में रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) अक्सर FPI निकास को मॉनिटर करके बाजार स्थिरता बचाने की कोशिश करता है।
मुख्य कारण और आर्थिक प्रभाव
पहला कारण: वैश्विक ब्याज दरों में बदलाव। जब US फेडरल रिज़र्व दरें बढ़ाता है, तो फंड ‘रिटर्न‑हाइड’ सर्च करते हैं और भारतीय इक्विटी से बाहर निकलते हैं। दूसरा कारण: घरेलू राजनीतिक अस्थिरता। चुनाव, नीति परिवर्तन या नियामक अनिश्चितता से विदेशी निवेशकों को सतर्क किया जाता है। तीसरा कारण: मुद्रा‑वॉलैटिलिटी। अगर भारतीय रुपये की कीमत घटती है, तो निवेशकों को नुकसान का डर रहता है, जिससे निकास तेज़ हो जाता है।
इन कारणों का सीधा असर भारतीय स्टॉक मार्केट पर पड़ता है। जब बड़ी मात्रा में FPI निकास होता है, तो संकेतकों में गिरावट, वॉल्यूम में तीव्र गिरावट और कभी‑कभी तकनीकी स्तर तोड़ने वाले मोमेंटम देखे जाते हैं। इसलिए सेबि (SEBI) नियमों को कड़ा करने, ग्रेस पिरियड कम करने और आधे‑समय की डिस्क्लोज़र बढ़ाने की पहल करता है, ताकि निवेशकों को भरोसा मिले और अचानक निकास के जोखिम घटें।
आर्थिक दृष्टिकोण से, निरंतर FPI निकास विदेशी बचत दर को घटा सकता है, जिससे चलन में गिरावट और निवेश की लागत बढ़ती है। हालांकि, कभी‑कभी यह भारत के बैंकों के लिए धन की आपूर्ति को नियंत्रित करने का अवसर बना रहता है, जिससे मुद्रा स्थिरता में मदद मिलती है।
किसी भी निवेशक के लिए यह समझना जरूरी है कि FPI निकास का पैटर्न कैसे पढ़ा जाए। अगर आप इंडेक्स फंड या ब्लू‑चिप में निवेश किया हुआ है, तो निकास के दौरान पोर्टफोलियो रिवर्सल पर नजर रखें। छोटे‑मात्रा वाले मिड‑कैप या न्यू‑कैप स्टॉक्स अधिक संवेदनशील होते हैं; इसलिए इनकी एंट्री‑एग्जिट टाइमिंग समझना लाभ को बचा सकता है।
तकनीकी रूप से, ट्रेडिंग प्लेटफ़ॉर्म पर ‘FOI (Foreign Outflow Indicator)’ या ‘Net FPI Position’ चार्ट देखें। जब ये इंडिकेटर नकारात्मक दिशा में शिफ्ट हो, तो बाजार में सप्लाई बढ़ने की संभावना देखी जाती है। इस समय निवेशकों को वैकल्पिक एसेट क्लास, जैसे गोल्ड या सरकारी बांड, में रिफ्लेक्शन देना समझदारी हो सकती है।
शुरुआती निवेशकों के लिए एक सरल नियम है: अगर निकास की खबरें लगातार दो हफ्तों से आती हैं, तो स्टॉक्स को ‘होल्ड’ से ‘सैल’ में बदलें। अनुभवी निवेशकों के लिए, यह मौका हो सकता है कि वे कम कीमत पर ‘डिप’ खरीदें, क्योंकि निकास के बाद अक्सर कीमतें पुनः उठती हैं। इस चक्र को समझना ‘बाजार साइकिल’ के सिद्धांत के साथ जुड़ता है, जहाँ ‘पेनीज’ और ‘पेरिस’ दोनों के बीच झूलाव देखी जाती है।
नीति‑निर्माताओं के लिए, FPI निकास को सीमित करना केवल टोकन उपाय नहीं, बल्कि दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता का हिस्सा है। RBI की विदेशी नकदी व्यवस्था, उचित विदेशी निवेश विनियम और सेबि की पारदर्शी डिश्क्लोज़र नीति, ये सभी मिलकर विदेशी फंड को आकर्षित और बनाए रखने में मदद करती हैं। जब ये तंत्र ठीक से काम करता है, तो निकास की तीव्रता घटती है और बाजार में निरंतरता आती है।
आपके पास अब एक व्यापक फ्रेमवर्क है—कारण, प्रभाव, नियामक जवाबदेही और निवेशक रणनीति—जिससे आप FPI निकास को समझ सकते हैं और आगे की कार्रवाई तय कर सकते हैं। नीचे आप इस टैग से जुड़े ताज़ा समाचार, विश्लेषण और उपयोगी टिप्स पाएँगे, जो आपके वित्तीय निर्णयों को मजबूत बनायेंगे।