अग॰, 23 2024
कोलकाता डॉक्टर बलात्कार और हत्या मामला: पॉलीग्राफ परीक्षण के पीछे की कहानी
कोलकाता की एक विशेष अदालत ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल डॉ. संदीप घोष और चार अन्य डॉक्टर्स पर पॉलीग्राफ परीक्षण करने की अनुमति दी है। यह निर्णय 31 वर्षीय स्नातकोत्तर प्रशिक्षु डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के मामले से संबंधित है, जिसका शव 9 अगस्त को अस्पताल के चेस्ट विभाग के सेमिनार हॉल में पाया गया था। इस घटना ने देशभर में व्यापक प्रदर्शनों को जन्म दिया।
सीबीआई की भूमिका और जांच
सीबीआई ने डॉ. संदीप घोष और चार अन्य डॉक्टर्स को, जो घटना की तारीख को ड्यूटी पर थे, अदालत में ले जाकर पॉलीग्राफ परीक्षण की अनुमति मांगी थी। इन परीक्षणों को अदालत की अनुमति और संदिग्धों की सहमति से ही किया जा सकता है। डॉ. घोष ने अपराध के खुलासे के दो दिन बाद इस्तीफा दे दिया था। सीबीआई ने उनसे पूछताछ की और उनमें कुछ उत्तरों में विसंगतियां पाई गईं, जिससे पॉलीग्राफ परीक्षण का निर्णय लिया गया।
एजेंसी ने प्राथमिक संदिग्ध संजय रॉय पर भी पॉलीग्राफ परीक्षण की मांग की है, जो कोलकाता पुलिस का एक नागरिक स्वयंसेवक है। इससे पहले, सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में आरोप लगाया था कि स्थानीय पुलिस द्वारा अपराध को ढंकने का प्रयास किया गया था, क्योंकि अपराध स्थल को संघीय एजेंसी के जांच शुरू करने से पहले बदल दिया गया था।
कोर्ट के आदेश और जांच की दिशा
कलकत्ता हाई कोर्ट ने 13 अगस्त को यह मामला कोलकाता पुलिस से सीबीआई को स्थानांतरित करने का आदेश दिया था और सीबीआई ने 14 अगस्त को अपनी जांच शुरू की। पॉलीग्राफ परीक्षणों का उद्देश्य उन लोगों की कथनों की विश्वसनीयता की पुष्टि करना है, जो इन परीक्षणों से गुजर रहे हैं।
घटना के दिन अस्पताल में जो कुछ हुआ, उसे समझना महत्वपूर्ण है। पीड़िता एक स्नातकोत्तर प्रशिक्षु डॉक्टर थी, जो नियमित रूप से अपनी ड्यूटी निभा रही थी। उसकी गंभीर मौत ने व्यापक जनसमूह को झकझोर दिया है, विशेषकर मेडिकल समुदाय में। सीबीआई की प्रारंभिक जांच में पता चला कि अस्पताल प्रशासन ने कुछ महत्वपूर्ण सबूतों को छुपाने का प्रयास किया था।
अस्पताल प्रशासन के खिलाफ आरोप
घोष और अन्य डॉक्टर्स पर शक की सुई इसलिए भी घूमती है क्योंकि मृत्यु के बाद उनके बयानों में कई महत्वपूर्ण विसंगतियां पाई गईं। डॉ. घोष की भूमिका विशेष रूप से संदिग्ध है क्योंकि उन्होंने दो दिन बाद इस्तीफा दे दिया। इसके बाद विभिन्न अवसरों पर सीबीआई द्वारा पूछताछ के दौरान उनके उत्तर भ्रामक पाए गए।
सीबीआई के अधिकारियों का मानना है कि पॉलीग्राफ परीक्षण से इन डॉक्टर्स के बयानों की सच्चाई उजागर होगी और इससे पूरे मामले की गुत्थी सुलझने में मदद मिलेगी।
संदिग्ध संजय रॉय की भूमिका
घटना में एक प्रमुख संदिग्ध संजय रॉय भी है, जो कोलकाता पुलिस का एक नागरिक स्वयंसेवक है। सीबीआई ने उसके बारे में कहा कि उसने भी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी छुपाने की कोशिश की। संजय रॉय की भूमिका स्पष्ट करने के लिए भी पॉलीग्राफ परीक्षण की मांग की गई है।
सीबीआई ने अदालत में यह भी आरोप लगाया कि स्थानीय पुलिस ने मामले को ढंकने का प्रयास किया था। जांच एजेंसी का दावा है कि अपराध स्थल को बदल दिया गया था, जिससे महत्वपूर्ण सबूत नष्ट हो गए।
जनता की अपेक्षाएँ और न्याय की उम्मीद
यह मामला बहुत ही संवेदनशील है और जनता की नजरों में है। पीड़िता के परिवार और दोस्तों के साथ पूरा मेडिकल समुदाय न्याय की उम्मीद कर रहा है।
संवेदनशील मामलों में पुलिस और अन्य एजेंसियों की भूमिका पर सवाल खड़े होना लाजिमी है। इसी कारण मामले की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की उम्मीद की जा रही है।
पॉलीग्राफ परीक्षण से जहां एक ओर सच सामने आने की उम्मीद की जा रही है, वहीं दूसरी ओर इस मामले से जुड़ी हर छोटी से छोटी जानकारी को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
इस जांच और कोर्ट के आदेशों से जुड़े हर पहलू को जनता और मीडिया गौर से देख रहे हैं।
निष्पक्ष और व्यापक जांच की आवश्यकता
यह सुनिश्चित करना कि दोषियों को उनके अपराध का उचित दंड मिले, सीबीआई और न्यायपालिका का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए। इस मामले की जटिलताएं और संवेदनशीलता को देखते हुए सीबीआई को पूरी जिम्मेदारी और निष्पक्षता से कार्य करना होगा।
अभी यह देखना बाकी है कि पॉलीग्राफ परीक्षणों के नतीजे क्या सामने आते हैं और वे कितने मददगार साबित होते हैं।
सभी संबंधित पक्षों को उम्मीद है कि पूरी सच्चाई सामने आएगी और न्याय होगा।