चिराग पासवान की LJP(RV) ने 29 में से 19 सीटें जीतकर किया शानदार कमबैक

चिराग पासवान की LJP(RV) ने 29 में से 19 सीटें जीतकर किया शानदार कमबैक

नव॰, 14 2025

बिहार की राजनीति में एक नया नाम चमक उठा — चिराग पासवान। 2025 के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने उनकी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को एक ऐसा रिवर्स जैक दिया, जिसकी कोई उम्मीद नहीं थी। 29 सीटों पर उम्मीदवार उतारी गई इस पार्टी ने 19 सीटें जीतकर न सिर्फ़ अपनी राजनीतिक जिंदगी बचाई, बल्कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को दो-तिहाई बहुमत से आगे बढ़ने में अहम भूमिका निभाई। ये सिर्फ़ एक जीत नहीं, एक अलर्ट है — जिसने सारे विश्लेषकों को चुप करा दिया।

जीत का आंकड़ा, जीत का अर्थ

भारत निर्वाचन आयोग की आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने बिहार के 18 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की, जिसे बाद में 19 तक पहुंचा दिया गया। सुगौली से राजेश कुमार उर्फ़ बब्लू गुप्ता ने 58,191 मतों के विशाल अंतर से जीत हासिल की — ये बिहार के इतिहास में एक अकेले उम्मीदवार की सबसे बड़ी जीतों में से एक है। गोविंदगंज में राजू तिवारी ने 32,683 मतों के अंतर से, और महुआ में संजय कुमार सिंह ने 44,997 मतों के साथ जीत दर्ज की। कुछ सीटों पर जीत का अंतर सिर्फ़ 800-900 मतों का रहा, जबकि अन्य पर 10,000 से ज्यादा। ये विविधता बताती है कि पार्टी का असर बिहार के विभिन्न सामाजिक-आर्थिक परिवेशों में फैला हुआ है।

क्षेत्रों में बदलाव: मगध, सीमांचल, पाटलिपुत्र

दोपहर 12:45 बजे तक, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) का वोट शेयर 5% से ऊपर पहुंच गया — एक ऐसा आंकड़ा जिसके बारे में बहुत से विश्लेषक मानते थे कि ये असंभव है। लेकिन जब नतीजे आए, तो साफ़ दिखा कि जीत का केंद्र तीन जिलों में था: मगध, सीमांचल और पाटलिपुत्र। ये क्षेत्र बिहार के ऐसे हिस्से हैं जहां जातीय और आर्थिक असमानता गहरी है। चिराग ने इन इलाकों में जाति-आधारित वोटिंग के साथ-साथ युवाओं के लिए रोजगार और शिक्षा के वादों को जोड़ा। उनके टीम ने गांव-गांव जाकर युवा कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग दी — ये नहीं कि वो जीत गए, बल्कि वो जीत की राह बना गए।

हनुमान फिर से नाम बनाया

2024 के लोकसभा चुनाव में चिराग ने अपने दम पर लोजपा (रामविलास) को पांच सीटों पर जीत दिलाई थी। उस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर 'हनुमान' कहा था — एक ऐसा नाम जो न सिर्फ़ शक्ति, बल्कि अनुशासन और अटूट लगन का प्रतीक है। अब यही 'हनुमान' बिहार में एक नए रूप में दिखा। 2020 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी केवल एक सीट जीत पाई थी, और चिराग खुद हार गए थे। लेकिन उस बार भी उनके उम्मीदवारों ने जनता दल (यूनाइटेड) को भारी नुकसान पहुंचाया था — जिससे जदयू की सीटें 71 से गिरकर 43 हो गईं। अब 2025 में वो बार नहीं, बल्कि बारिश का दौर आ गया।

एनडीए का दांव: जो अनुपात से ज्यादा था, वो अब बर्बर जीत बन गया

एनडीए ने लोजपा (रामविलास) को 29 सीटें दी थीं — इसे कई नेता और विश्लेषक अनुपात से ज्यादा बताते थे। बीजेपी के लिए ये एक जोखिम था। लेकिन अब ये दांव एक बुद्धिमानी का नमूना बन गया। चिराग की पार्टी ने वोट ट्रांसफर को इतना बखूबी काम में लिया कि ये न सिर्फ़ अपनी सीटें जीतीं, बल्कि बीजेपी और जेडीयू के लिए भी फिनिशर का काम किया। एक वरिष्ठ एनडीए सूत्र ने कहा, "चिराग ने नहीं बस वोट लाए, बल्कि वोट ट्रांसफर को एक साइंस बना दिया।" उन्हें अब राजनीति में 'रविंद्र जडेजा' भी कहा जा रहा है — जो बाकी टीम के लिए विजय का अंतिम बिंदु बन जाता है।

क्या अब चिराग पासवान बिहार का अगला बड़ा नेता हो सकते हैं?

क्या अब चिराग पासवान बिहार का अगला बड़ा नेता हो सकते हैं?

2020 में लोजपा (रामविलास) संगठनात्मक बिखराव, पारिवारिक दरार और निरंतर हारों के कारण हाशिये पर चली गई थी। लेकिन चिराग ने अपनी रणनीति बदली — वो अब बेटे नहीं, बल्कि नेता हैं। उन्होंने अपने भाई और पिता के नेतृत्व के निशान को छोड़ दिया। उन्होंने युवा नेताओं को अपनी टीम में शामिल किया। उन्होंने गांवों में अपने उम्मीदवारों को लोकल इश्यूज़ पर फोकस करने के लिए प्रशिक्षित किया। अब ये पार्टी सिर्फ़ एक राजनीतिक इकाई नहीं, बल्कि एक नए नेतृत्व का प्रतीक है।

अगला कदम: बिहार में बल का नया संतुलन

अगले छह महीनों में बिहार में जो बदलाव आएगा, वो राष्ट्रीय स्तर पर भी असर डालेगा। चिराग की जीत ने दिखाया कि छोटी पार्टियां भी एनडीए के लिए बहुत कुछ कर सकती हैं — अगर उन्हें विश्वास और स्वतंत्रता दी जाए। ये जीत ने जदयू के लिए एक बड़ा सवाल खड़ा किया है — क्या वो अब भी बिहार की राजनीति का केंद्र बन सकते हैं? और क्या चिराग की पार्टी अगले चुनाव में बीजेपी के साथ बराबरी का दावा करने लगेगी? ये सवाल अब दिल्ली के राजनीतिक वृत्तों में भी बहस का विषय बन गए हैं।

FAQ

चिराग पासवान की LJP(RV) ने 2020 के चुनाव में क्यों इतनी खराब प्रदर्शन किया?

2020 के चुनाव में लोजपा (रामविलास) को संगठनात्मक बिखराव, पारिवारिक दरार और उम्मीदवारों की अनुपयुक्त चयन प्रक्रिया की वजह से केवल एक सीट मिली। चिराग खुद हार गए थे, और पार्टी का नेतृत्व अस्थिर था। इस बार उन्होंने अपने टीम को पूरी तरह बदल दिया, युवाओं को नेता बनाया, और लोकल इश्यूज़ पर फोकस किया।

चिराग पासवान की जीत ने एनडीए को कैसे मदद की?

LJP(RV) की जीत ने एनडीए को दो-तिहाई बहुमत से आगे बढ़ने में मदद की। वोट ट्रांसफर के जरिए चिराग के उम्मीदवारों ने बीजेपी और जेडीयू के लिए भी वोट लाए। उनकी 19 सीटें ने एनडीए के कुल सीटों को 200 के आंकड़े के पार पहुंचाया, जिससे बिहार में सत्ता का नया संतुलन बना।

क्या चिराग पासवान अगले चुनाव में बीजेपी के साथ बराबरी का दावा कर सकते हैं?

हां, बिल्कुल। चिराग ने अब अपनी पार्टी को एक अलग नेतृत्व के रूप में स्थापित कर दिया है। अगर वो 2030 तक अपने नेतृत्व को बनाए रखें, तो बीजेपी के साथ बराबरी का दावा करना असंभव नहीं। उनकी जातीय आधारित वोटिंग और युवा आधार दोनों बहुत मजबूत हैं।

LJP(RV) के जीते गए 19 सीटों में से कौन सी जिलों के हैं?

19 सीटों में से लगभग 12 सीटें मगध, सीमांचल और पाटलिपुत्र क्षेत्रों में हैं। इनमें बक्सर, बांका, भागलपुर, नालंदा, पटना और गया जिलों की सीटें शामिल हैं। ये वो क्षेत्र हैं जहां अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी अधिक है, और चिराग ने इन्हें अपनी रणनीति का केंद्र बनाया।

2024 लोकसभा और 2025 विधानसभा चुनाव में चिराग की रणनीति में क्या अंतर था?

2024 में चिराग ने राष्ट्रीय नेतृत्व के तहत चुनाव लड़ा, जहां उनकी जीत नेताओं की व्यक्तिगत लोकप्रियता पर निर्भर थी। लेकिन 2025 में उन्होंने एक व्यवस्थित रणनीति अपनाई — गांवों में युवा कार्यकर्ताओं की टीम बनाई, स्थानीय समस्याओं को वोटिंग नारे बनाया, और वोट ट्रांसफर को एक विज्ञान के रूप में संचालित किया।

क्या चिराग पासवान बिहार के मुख्यमंत्री बन सकते हैं?

अभी नहीं — उनकी पार्टी की सीटें अभी भी बहुत कम हैं। लेकिन अगर वो 2030 तक 40+ सीटें जीत लें, तो वो एक ऐसे नेता बन सकते हैं जिसके बिना कोई गठबंधन नहीं बन सकता। बिहार की राजनीति में उनका भविष्य अब बहुत उज्ज्वल है।

10 टिप्पणियाँ

  • Shailendra Thakur
    के द्वारा प्रकाशित किया गया Shailendra Thakur
    06:45 पूर्वाह्न 11/15/2025

    ये जीत सिर्फ चिराग की नहीं, बिहार के उन युवाओं की है जिन्होंने गांवों में चलकर लोगों की आवाज़ बनाई। कोई नेता नहीं, एक आंदोलन बन गया है।

  • Sumeet M.
    के द्वारा प्रकाशित किया गया Sumeet M.
    13:04 अपराह्न 11/16/2025

    अरे भाई! ये सब बकवास है! बीजेपी ने जो दिया वो दिया, चिराग तो बस उसका फायदा उठा रहा है! नेता बनने का दावा करना बंद करो, ये सब बस नेताओं की खेल है!

  • vinoba prinson
    के द्वारा प्रकाशित किया गया vinoba prinson
    00:45 पूर्वाह्न 11/17/2025

    इस जीत का विश्लेषण करने के लिए तो एमएससी इन पॉलिटिकल साइंस की डिग्री चाहिए। चिराग ने वोट ट्रांसफर को गेम थ्योरी के अनुसार ऑप्टिमाइज़ किया है - ये राजनीति नहीं, एक साइंटिफिक एक्सपेरिमेंट है। आप जिस तरह से इसे लेकर बात कर रहे हैं, वो तो बस एक फैनबेस की आवाज़ है।

  • Rajveer Singh
    के द्वारा प्रकाशित किया गया Rajveer Singh
    04:55 पूर्वाह्न 11/17/2025

    हनुमान कहा गया तो हनुमान है! जो बीजेपी के साथ चलता है वो देशभक्त है, जो नहीं चलता वो विदेशी राज का गुलाम! चिराग ने देश की राह दिखाई, अब बाकी सब उसके पीछे चलो!

  • Anand Itagi
    के द्वारा प्रकाशित किया गया Anand Itagi
    15:15 अपराह्न 11/17/2025

    मगध और सीमांचल में युवाओं को ट्रेनिंग देना बहुत अच्छा लगा बस अब ये ट्रेनिंग आगे बढ़ेगी या बस चुनाव बाद भूल जाएंगे ये सवाल है

  • Kisna Patil
    के द्वारा प्रकाशित किया गया Kisna Patil
    14:32 अपराह्न 11/18/2025

    जब एक आदमी अपने पिता के नाम के छाया से निकलकर खुद का रास्ता बनाता है तो वो सिर्फ एक नेता नहीं बल्कि एक अर्थ बन जाता है। चिराग ने बिहार के लाखों युवाओं को ये सिखाया कि तुम भी बदल सकते हो।

  • Sahil Kapila
    के द्वारा प्रकाशित किया गया Sahil Kapila
    07:28 पूर्वाह्न 11/19/2025

    अरे भाई ये सब लिख लिया तो अब बीजेपी वाले क्या करेंगे अगले चुनाव में चिराग को दूसरी पार्टी दे देंगे या फिर उसकी पार्टी को घुला देंगे ये तो अब देखना होगा

  • Muneendra Sharma
    के द्वारा प्रकाशित किया गया Muneendra Sharma
    00:47 पूर्वाह्न 11/21/2025

    ये जीत बिहार के गरीब युवाओं की है जिन्होंने अपने गांव में एक पोस्टर चिपकाया या एक गांव वाले को बताया। ये नेता की जीत नहीं, एक असली जनआंदोलन की जीत है। अगर इसे समझोगे तो बाकी सब अर्थहीन लगेगा।

  • ASHOK BANJARA
    के द्वारा प्रकाशित किया गया ASHOK BANJARA
    04:15 पूर्वाह्न 11/22/2025

    इतिहास में ऐसे कई नेता आए हैं जिन्होंने एक चुनाव में जीत कर अपनी जगह बनाई और फिर भूल गए। चिराग के लिए असली चुनौती अब शुरू हो रही है - क्या वो एक विचार बन पाएंगे या बस एक नाम रह जाएंगे? ये तो अगले पांच साल बताएंगे।

  • Ankit Meshram
    के द्वारा प्रकाशित किया गया Ankit Meshram
    06:00 पूर्वाह्न 11/23/2025

    जीत गए। अब देखते हैं।

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