शान और सिलसिला: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप पर भी अमिताभ की ये फिल्में बन गईं म्यूजिक क्लासिक्स

शान और सिलसिला: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप पर भी अमिताभ की ये फिल्में बन गईं म्यूजिक क्लासिक्स

नव॰, 11 2025

1980 की फिल्म शान ने बॉलीवुड के इतिहास में एक अजीब सा रिकॉर्ड बनाया — भारत की सबसे महंगी फिल्म बनकर भी बॉक्स ऑफिस पर सिर्फ ₹4.50 करोड़ कमाई की। इसमें सात सुपरस्टार्स थे, रेकॉर्ड बजट था, और एक ऐसा साउंडट्रैक जो आज भी रेडियो पर बजता है। अमिताभ बच्चन की इस फिल्म ने लोगों को बॉक्स ऑफिस पर नहीं, लेकिन अपने गानों से जीत लिया। गाने — यम्मा यम्मा, जानू मेरी जान, दोस्तों से प्यार किया — अब भी शादियों, बच्चों के जन्मदिन, और टीवी री-रन्स में बजते हैं। फिल्म फ्लॉप हुई, लेकिन संगीत जीवित रहा।

बॉक्स ऑफिस की गिरावट और संगीत की जीत

जब शान रिलीज हुई, तो लोगों ने टिकट खरीदे। पहले हफ्ते बुकिंग अच्छी रही। लेकिन रिव्यूज फीके थे। दर्शकों ने कहा — फिल्म लंबी है, कहानी बेकार है, एक्टिंग बोरिंग है। शुरुआत के बाद टिकट बिकना बंद हो गया। इसका बजट ₹1.75 करोड़ था, जो 1980 में अविश्वसनीय था। इसके बाद जब शोलाय (1975) के रिकॉर्ड की बात हुई, तो शान को फ्लॉप का टैग लग गया। लेकिन यहीं से एक अलग कहानी शुरू हुई।

रेमिंडर ने बताया — इस फिल्म का संगीत आर.डी. बर्मन ने बनाया था। उनके गाने बस गाने नहीं थे — वो मूड थे, भावनाएँ थीं। यम्मा यम्मा ने लोगों को नाचने पर मजबूर कर दिया। प्यार करने वाले ने दिल तोड़ दिया। फिल्म फ्लॉप हुई, लेकिन एल्बम बेचा गया। फिल्मफेयर अवॉर्ड्स में इसे बेस्ट सिनेमैटोग्राफी का अवॉर्ड मिला — एक ऐसा सम्मान जो बॉक्स ऑफिस की कमाई से अलग था।

सिलसिला: रंग बरसे का जादू

एक साल बाद, सिलसिला (1981) आया। इसकी कहानी भी उतनी ही जटिल थी — त्रिकोणीय प्रेम, आत्म-बलिदान, और एक ऐसा रिश्ता जो सामाजिक नियमों को चुनौती देता था। दर्शकों ने इसे समझने से इंकार कर दिया। बॉक्स ऑफिस पर ये भी फ्लॉप हो गई।

लेकिन फिर आया रंग बरसे। इस गाने ने भारत को रुकवा दिया। हर बारिश के मौसम में ये गाना रेडियो पर बजता है। ये गाना किसी फिल्म का हिस्सा नहीं, एक सांस्कृतिक घटना बन गया। अमिताभ बच्चन ने इस फिल्म में अपने आप को एक दुखी प्रेमी के रूप में दिखाया — न तो एक्शन हीरो, न आगे बढ़ने वाला नायक, बल्कि एक ऐसा आदमी जो अपने दिल के आगे झुक गया।

16 फ्लॉप्स के बाद ज़ंजीर का तूफान

अमिताभ की ये फ्लॉप्स बहुत पुरानी बात नहीं हैं। राजा मुराद ने BollywoodShaadis.com को बताया कि 1973 तक अमिताभ के 16 लगातार फिल्में फ्लॉप हुईं। उनका नाम बॉलीवुड में फ्लॉप का प्रतीक बन चुका था।

तब प्रकाश मेहरा ने ज़ंजीर (1973) बनाने का फैसला किया। उन्होंने दिलीप कुमार, धर्मेंद्र, देव आनंद, राजकुमार — सभी सुपरस्टार्स को ऑफर किया। सबने इनकार कर दिया। फिर जया बच्चन ने अमिताभ का नाम लिया। और जब अमिताभ ने विजय का किरदार निभाया — गुस्से वाला, सिस्टम से नाराज, बाहर से कठोर, अंदर से दर्द भरा — तो बॉलीवुड बदल गया।

ज़ंजीर ने ₹17 करोड़ कमाए — आज के ₹500 करोड़ के बराबर। इसने एक नया हीरो बनाया: अमिताभ बच्चन। इस बार वो फिर से फ्लॉप्स की ओर लौटे — लेकिन अब उनके फ्लॉप्स के गाने भी लोगों के दिलों में बस गए।

फ्लॉप्स की विरासत: डिजिटल युग में नया जीवन

आज, शान और सिलसिला के गाने YouTube पर करोड़ों व्यूज पाते हैं। Spotify और Apple Music पर इनके एल्बम्स टॉप चार्ट्स में हैं। टीवी चैनल इन्हें रोज रीरन करते हैं। ये फिल्में बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रहीं, लेकिन उनका संगीत एक ऐसा जीवन जी रहा है जिसे कोई नहीं रोक सका।

इंडस्ट्री के विश्लेषकों का कहना है कि अब डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने इन फ्लॉप्स को एक नया जीवन दे दिया है। जो लोग आज बॉलीवुड की नई फिल्में देखते हैं, वो उनके पेरेंट्स के दिनों की फिल्मों के गाने सुनकर उनकी भावनाओं को समझ रहे हैं। ये गाने बस गाने नहीं — ये यादें हैं।

अमिताभ के अन्य फ्लॉप्स जिनके गाने अभी भी बजते हैं

  • सात हिंदुस्तानी (1969): अमिताभ की पहली फिल्म, बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन इसका गाना कल तू आएगा आज भी अकादमिक और सामाजिक चर्चाओं में उल्लेखित होता है।
  • संजोग (1972): बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन इसका गाना मेरे दिल का तारा आज भी रेडियो पर बजता है।
  • बोल ना हल्के हल्के (2004): इस फिल्म का बॉक्स ऑफिस पर बहुत कम कामयाबी मिली, लेकिन इसका गाना बोल ना हल्के हल्के और झूम बरबर आज भी डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर ट्रेंड करते हैं।

इन फिल्मों का सामान्य तत्व क्या है? वो फिल्में जिनके गाने जीवित हैं, वो फिल्में हैं जिनमें संगीतकारों ने अपनी आत्मा डाली थी। आर.डी. बर्मन, लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी — ये लोग गाने नहीं, भावनाएँ बना रहे थे।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

शान और सिलसिला जैसी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर क्यों फ्लॉप हुईं?

इन फिल्मों की कहानी जटिल थी, गति धीमी थी, और दर्शकों को तब तक लगा कि ये एक्शन या कॉमेडी वाली फिल्म हैं। लेकिन ये भावनात्मक नाटक थीं, जिन्हें समझने के लिए समय चाहिए। जब टिकट बिकना बंद हो गया, तो फिल्म को फ्लॉप घोषित कर दिया गया — लेकिन गानों ने बाद में इन्हें जीवित रख लिया।

आर.डी. बर्मन के गाने आज भी क्यों लोकप्रिय हैं?

उनके गाने में एक अनूठा मिश्रण था — भारतीय राग, पश्चिमी ज़ेनर, और भावनात्मक लिरिक्स। उन्होंने गानों को बस धुन नहीं, बल्कि एक अनुभव बनाया। आज के डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर ये गाने बच्चों तक पहुँच रहे हैं, जो इनके संगीत को अपनी भावनाओं के साथ जोड़ रहे हैं।

अमिताभ बच्चन के कितने फ्लॉप फिल्मों के गाने आज भी बजते हैं?

कम से कम 7 फिल्में हैं जिनके गाने अभी भी रेडियो, YouTube और Spotify पर ट्रेंड करते हैं — शान, सिलसिला, सात हिंदुस्तानी, संजोग, बोल ना हल्के हल्के, जब जीते थे जीते थे, और दो दोस्त। इनमें से हर फिल्म का एक गाना अब भारतीय संस्कृति का हिस्सा है।

क्या आज की फिल्में भी ऐसा कर पाएंगी?

संभव है, लेकिन आज की फिल्में अक्सर गानों को ब्रांडिंग टूल के रूप में इस्तेमाल करती हैं, न कि कला के रूप में। जब गाना फिल्म का हिस्सा बन जाता है, तभी वो जीवित रहता है। आज के संगीतकारों को इस बात की जरूरत है — गाने बनाने के बजाय, अनुभव बनाना।

बॉक्स ऑफिस और संगीत के बीच अंतर क्यों है?

बॉक्स ऑफिस तुरंत प्रतिक्रिया देता है — क्या लोग थिएटर में आए? संगीत धीरे-धीरे लोगों के दिलों में घुसता है। एक फिल्म एक दिन में फ्लॉप हो सकती है, लेकिन एक गाना दशकों तक जी सकता है। यही अंतर है — तात्कालिकता बनाम स्थायित्व।

इन फ्लॉप्स की कहानी हमें क्या सिखाती है?

ये हमें सिखाती है कि सफलता का एक ही मापदंड नहीं होता। कभी-कभी वो चीजें जो बाजार में नहीं बिकतीं, वो इतिहास में सबसे ज्यादा याद की जाती हैं। अमिताभ की ये फिल्में बॉक्स ऑफिस पर नहीं, लेकिन दिलों में जीवित हैं — और यही सच्ची कामयाबी है।